ब्रह्मा जी ने अपनी शक्ति से एक कन्या उत्पन्न की जिसका नाम उन्होंने ‘आह’ रखा।
‘आह’ का अर्थ होता है हाय, दुख, शोक।
उन्होंने उसको तीनों लोकों का भ्रमण करने के लिए भेजा और कहा- “तू जिसको चाहे उसके साथ विवाह कर ले।“
वह कन्या तीनों लोकों में घूम आई मगर उसे किसे ने अपनी पत्नी रूप में स्वीकार नहीं किया। वह जिस भी व्यक्ति के समीप जाने का प्रयास करती वह उसे दूर भागने लगता। संसार का कोई भी ऐसा पुरूष नहीं है जो हाय, दुख, शोक रूपी कन्या को अपनी पत्नि बनाना चाहेगा।
वह हताश और निराश होकर अपने पिता ब्रह्मा जी के पास वापिस लौट आई। अपनी बेटी से सारा वृतांत जान ब्रह्मा जी ने उसका नाम ‘आह’ से बदल कर ‘चाह’ रख दिया। ‘चाह’ का अर्थ होता है इच्छा, आकांक्षा, अभिलाषा, वासना।
उन्होंने उसे पुन: तीनों लोको का भ्रमण करने के लिए भेजा और अपने लिए पति ढूढने के लिए कहा। अब परिस्थिति बिल्कुल विपरित थी अब पुरूष उसे अपनी पत्नी बनाने के लिए उसके आगे-पीछे चक्कर लगाने लगे।
ब्रह्मा जी ने उसका नाम बदल कर ‘चाह’ तो रख दिया लेकिन अंदर से आज भी वो वही ‘आह’ ही है। जो सभी दुखों का कारण है।
यह संसार जो ऊपर से ढेरों चाहतें और इच्छाएँ पैदा करता है बहुत अच्छा लगता है मगर इसके अंदर वही दुख और संताप है, जो ब्रह्मा जी ने बनाए हैं।
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